BHARATVAANI...KAVITA SINGS INDIA I Sing.. I Write.. I Chant.. I Recite.. I'm here to Tell Tales of my glorious motherland INDIA, Tales of our rich cultural, spiritual heritage, ancient Vedic history, literature and epic poetry. My podcasts will include Bharat Bharti by Maithilisharan Gupta, Rashmirathi and Parashuram ki Prateeksha by Ramdhari Singh Dinkar, Kamayani by Jaishankar Prasad, Madhushala by Harivanshrai Bachchan, Ramcharitmanas by Tulsidas, Radheshyam Ramayan, Valmiki Ramayan, Soun ...
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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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This is my first podcast, please have fun listening and give feedback :)
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नाटकवाला प्रस्तुत अनेकविध नाट्यकृती.
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Collection of poems, stories and much more!!!
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इतिहासकारों रचनाकारों के विचारों से ओतप्रोत होने के लिए मुझसे जुड़े रहिए।
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This is my first podcast, please have fun listening and give feedback :)
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This is my poetry podcast.
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Seberapa sering kepala kita riuh sekali? Terkadang, ada banyak hal di dunia yang sulit untuk dijabarkan. Tentang hal paling sederhana, hingga yang paling rumit untuk ditemukan jawabannya. Namun, ada juga beberapa orang yang mau berbagi sedikit cerita dalam episode hidupnya. Tahu kenapa? Karena ada beberapa kisah, yang tidak seharusnya dibuang begitu saja. Mari sama-sama melihat hidup dari sudut pandang yang berbeda. Setiap motivasi tidak akan jadi inspirasi jika tidak kamu mulai dari diri se ...
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Dr KAVITA SHARMA
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Presenting Hindi poems written by eminent poets: Recitation by Sangita Tripathi.
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आओ जज़्बातों को लफ्ज़ देने की कोशिश करें MANKAHI ALSO AVAILABLE ON YOU TUBE KINDLY SUBSCRIBE https://youtube.com/c/MANKAHIGURTEJSINGHOFFICIAL
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my Marathi podcast is mainly about post retirement passion following for overcoming loneliness,emptiness and negativity which seeps in due to lot of time at disposal .workload is less and kids are not around.So its about my passion of traveling.I will come with my own travel stories and some from different fellow travellerswith their amazing stories.
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Success stories and study capsules to pass PMP in 21 Days with Kavita Sharma - Significant Contributor PMBOK sixth edition
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Wo meri kya hai- kavita Vivek ji thank you for choosing my voice to give life to your poem Friends this poem is a amazing creation to experience one side Love
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यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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"Inner Sense with Kavita" is a podcast by Kavita Satwalekar where she helps you make sense of your inner world. By combining her background in Psychology and Organizational Development with over 20 years of global experience in Coaching and Mentoring, Kavita brings a unique perspective to help you lead from within. Being aware of your values and beliefs is the first step towards understanding why you behave and react in certain ways. Understanding yourself from the inside out provides you wi ...
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Watch now at youtube.com/@LightsCameraConversation or listen on your favorite podcast platform! ★ Join entertainment entrepreneurs Walid Chaya and Kavita Raj over a drink on "Lights Camera Conversation," the ultimate Hollywood insider podcast. Discover the glamorous-yet-authentic sides of show business, experience Hollywood special guests, and find inspiration for music, film lovers, and creative professionals alike. Walid Chaya, actor, director, and writer based in Los Angeles, is known for ...
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Are you fascinated by the stories and mythology of ancient India? Do you want to learn more about the epic tale of Ramayana and its relevance to modern-day life? Then you should check out Ramayan Aaj Ke Liye, the ultimate podcast on Indian mythology and culture. Hosted by Kavita Paudwal, this podcast offers a deep dive into the world of Ramayana and its characters, themes, and teachings.
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उतरा ज्वार | दूधनाथ सिंह उतरा ज्वार जल मैला लहरें गयीं क्षितिज के पार काला सागर अन्धी आँखें फाड़ ताक रहा है गहन नीलिमा बुझे हुए तारे कचपच-कचपच ढूँढ़ रहे हैं ठौर मैं हूँ मैं हूँ यह दृश् । खोज रहा हूँ बंकिम चाँद क्षितिज किनारे मन में जो अदृश्य है ।Por Nayi Dhara Radio
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सीता राम विवाह | बालकाण्ड राधेश्याम रामायण | Narrated by Kavita | Bharatvani KavitaSingsIndia
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सीता राम विवाह | बालकाण्ड राधेश्याम रामायण | Narrated by Kavita | Bharatvani KavitaSingsIndia
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अभया | अश्विनी पुरवा सुहानी नहीं, डरावनी है इस बार, चपला सी दिल दहलाती आती चीत्कार। वर्षा नहीं, रक्त बरसा है इस बार, पक्षी उड़ गए पेड़ों से, रिक्त है हर डार। किसे सुनाती हो दुख अपना, सभी बहरे हैं, नहीं समझेगा कोई, घाव तुम्हारे कितने गहरे हैं। पहने मुखौटे घूमते, घिनौने वही सब चेहरे हैं, अपराधी सत्ता के गलियारों में ही तो ठहरे हैं। रक्षक बने भक्षक, छ…
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मौन ही मुखर है | विष्णु प्रभाकर कितनी सुन्दर थी वह नन्हीं-सी चिड़िया कितनी मादकता थी कण्ठ में उसके जो लाँघ कर सीमाएँ सारी कर देती थी आप्लावित विस्तार को विराट के कहते हैं वह मौन हो गई है- पर उसका संगीत तो और भी कर रहा है गुंजरित- तन-मन को दिगदिगन्त को इसीलिए कहा है महाजनों ने कि मौन ही मुखर है, कि वामन ही विराट है ।…
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वे लोग | लक्ष्मी शंकर वाजपेयी वे लोग डिबिया में भरकर पिसी हुई चीनी तलाशते थे चींटियों के ठिकाने छतों पर बिखेरते थे बाजरा के दाने कि आकर चुगें चिड़ियाँ वे घर के बाहर बनवाते थे पानी की हौदी कि आते जाते प्यासे जानवर पी सकें पानी भोजन प्रारंभ करने से पूर्व वे निकालते थे गाय तथा अन्य प्राणियों का हिस्सा सूर्यास्त के बाद, वे नहीं तोड़ने देते थे पेड़ से ए…
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झूठ की नदी | विजय बहादुर सिंह झूठ की नदी में डगमग हैं सच के पाँव चेहरे पीले पड़ते जा रहे हैं मुसाफ़िरों के मुस्कुरा रहे हैं खेवैये मार रहे हैं डींग भरोसा है उन्हें फिर भी सम्हल जाएगी नाव मुसाफ़िर बच जाएँगें भँवर थम जाएगीPor Nayi Dhara Radio
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होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिए | दुष्यंत कुमार होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिए इस परकटे परिन्दे की कोशिश तो देखिए। गूंगे निकल पड़े हैं, ज़ुबाँ की तलाश में, सरकार के खिलाफ़ ये साज़िश तो देखिए। बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन, सूखा मचा रही ये बारिश तो देखिए। उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें, चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिए । जिसने …
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नज़र झुक गई और क्या चाहिए | फ़िराक़ गोरखपुरी नज़र झुक गई और क्या चाहिए अब ऐ ज़िंदगी और क्या चाहिए निगाह -ए -करम की तवज्जो तो है वो कम कम सही और क्या चाहिए दिलों को कई बार छू तो गई मेरी शायरी और क्या चाहिए जो मिल जाए दुनिया -ए -बेगाना में तेरी दोस्ती और क्या चाहिए मिली मौत से ज़िंदगी फिर भी तो न की ख़ुदकुशी और क्या चाहिए जहाँ सौ मसाइब थे ऐ ज़िंदगी मोहब्…
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कैपिटलिज़्म | गौरव तिवारी बाग में अक्सर नहीं तोड़े जाते गुलाब लोग या तो पसंद करते हैं उसकी ख़ुशबू या फिर डरते हैं उसमें लगे काँटों से जो तोड़ने पर कर सकते हैं उन्हें ज़ख्मी वहीं दूसरी तरफ़ घास कुचली जाती है, रगड़ी जाती है, कर दी जाती है अपनी जड़ों से अलग सहती हैं अनेक प्रकार की प्रताड़नाएं फिर भी रहती हैं बाग में, क्योंकि बाग भी नहीं होता बाग घास के ब…
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हजामत | अनूप सेठी सैलून की कुर्सी पर बैठे हुए कान के पीछे उस्तरा चला तो सिहरन हुई आइने में देखा बाबा ने साठ-पैंसठ साल पहले भी कान के पीछे गुदगुदी हुई थी पिता ने कंधे से थाम लिया था आइने में देखा बाबा ने पीछे बैंच पर अधेड़ बेटा पत्रिकाएँ पलटता हुआ बैठा है चालीस साल पहले यह भी उस्तरे की सरसराहट से बिदका था बाबा ने देखा आइने में इकतालीस साल पहले जब पत…
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एक छोटा सा अनुरोध | केदारनाथ सिंह आज की शाम जो बाज़ार जा रहे हैं उनसे मेरा अनुरोध है एक छोटा-सा अनुरोध क्यों न ऐसा हो कि आज शाम हम अपने थैले और डोलचियाँ रख दें एक तरफ़ और सीधे धान की मंजरियों तक चलें चावल ज़रूरी है ज़रूरी है आटा दाल नमक पुदीना पर क्यों न ऐसा हो कि आज शाम हम सीधे वहीं पहुँचें एकदम वहीं जहाँ चावल दाना बनने से पहले सुगन्ध की पीड़ा से …
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जल | अशोक वाजपेयी जल खोजता है जल में हरियाली का उद्गम कुछ नीली स्मृतियाँ और मटमैले चिद्म जल भागता है जल की गली में गाते हुए लय का विलय का उच्छल गान जल देता है जल को आवाज़, जल सुनता है जल की कथा, जल उठाता है अंजलि में जल को, जल करता है जल में डूबकर उबरने की प्रार्थना जल में ही थरथराती है जल की कामना।Por Nayi Dhara Radio
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अमन का नया सिलसिला चाहता हूँ | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी अमन का नया सिलसिला चाहता हूँ जो सबका हो ऐसा ख़ुदा चाहता हूँ। जो बीमार माहौल को ताज़गी दे वतन के लिए वो हवा चाहता हूँ। कहा उसने धत इस निराली अदा से मैं दोहराना फिर वो ख़ता चाहता हूँ। तू सचमुच ख़ुदा है तो फिर क्या बताना तुझे सब पता है मैं क्या चाहता हूँ। मुझे ग़म ही बांटे मुक़द्दर ने लेकिन मैं सबको ख़ु…
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सपने | शिवम चौबे रिक्शे वाले सवारियों के सपने देखते हैं सवारियाँ गंतव्य के दुकानदार के सपने में ग्राहक ही आएं ये ज़रूरी नहीं मॉल भी आ सकते हैं छोटे व्यापारी पूंजीपतियों के सपने देखते हैं। पूंजीपति प्रधानमंत्री के सपने देखता है प्रधानमंत्री के सपने में सम्भव है जनता न आये आम आदमी अच्छे दिन के स्वप्न देखता है। पिता देखते हैं अपना घर होने का सपना माँ क…
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मैं उनका ही होता| गजानन माधव मुक्तिबोध मैं उनका ही होता, जिनसे मैंने रूप-भाव पाए हैं। वे मेरे ही लिए बँधे हैं जो मर्यादाएँ लाए हैं। मेरे शब्द, भाव उनके हैं, मेरे पैर और पथ मेरा, मेरा अंत और अथ मेरा, ऐसे किंतु चाव उनके हैं। मैं ऊँचा होता चलता हूँ उनके ओछेपन से गिर-गिर, उनके छिछलेपन से खुद-खुद, मैं गहरा होता चलता हूँ।…
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प्रेम गाथा | अजय कुमार प्रेम एक कमरे को कैनवास में तब्दील कर के उसमें आँक सकता है एक बादल जंगल में नाचता हुआ मोर एक गिरती हुई बारिश देवदार का एक पेड़ एक सितारों भरी रेशमी रात एक अलसाई गुनगुनाती सुबह समुंदर की लहरों को मदमदाता शोर प्रेम एक गलती को दे सकता है पद्म विभूषण एक झूठ को सहेज कर रख सकता है आजीवन एक पराजय का सहला सकता है माथा और हर प्रतीक्षा…
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चँदेरी | कुमार अम्बुज चंदेरी मेरे शहर से बहुत दूर नहीं है मुझे दूर जाकर पता चलता है बहुत माँग है चंदेरी की साड़ियों की चँदेरी मेरे शहर से इतनी क़रीब है कि रात में कई बार मुझे सुनाई देती है करघों की आवाज़ जब कोहरा नहीं होता सुबह-सुबह दिखाई देते हैं चँदेरी के किले के कंगूरे चँदेरी की दूरी बस इतनी है जितनी धागों से कारीगरों की दूरी मेरे शहर और चँदेरी …
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वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा | परवीन शाकिर वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा वो हवाओं की तरह ख़ाना-ब-जाँ फिरता है एक झोंका है जो आएगा गुज़र जाएगा वो जब आएगा तो फिर उस की रिफ़ाक़त के लिए मौसम-ए-गुल मिरे आँगन में ठहर जाएगा आख़िरश …
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सिलबट्टा | प्रशांत बेबार वो पीसती है दिन रात लगातार मसाले सिलबट्टे पर तेज़ तीखे मसाले अक्सर जलने वाले पीसकर दाँती तानकर भौहें वो पीसती है हरी-हरी नरम पत्तियाँ और गहरे काले लम्हे सिलेटी से चुभने वाले किस्से वो पीसती हैं मीठे काजू, भीगे बादाम और पीस देना चाहती है सभी कड़वी भददी बेस्वाद बातें लगाकर आलती-पालती लिटाकर सिल, उठाकर सिरहाना उसका दोनों हथेलि…
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अड़ियल साँस | केदारनाथ सिंह पृथ्वी बुख़ार में जल रही थी और इस महान पृथ्वी के एक छोटे-से सिरे पर एक छोटी-सी कोठरी में लेटी थी वह और उसकी साँस अब भी चल रही थी और साँस जब तक चलती है झूठ सच पृथ्वी तारे - सब चलते रहते हैं डॉक्टर वापस जा चुका था और हालाँकि वह वापस जा चुका था पर अब भी सब को उम्मीद थी कि कहीं कुछ है। जो बचा रह गया है नष्ट होने से जो बचा रह …
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ऐ औरत! | नासिरा शर्मा जाड़े की इस बदली भरी शाम को कहाँ जा रही हो पीठ दिखाते हुए ठहरो तो ज़रा! मुखड़ा तो देखूँ कि उस पर कितनी सिलवटें हैं थकन और भूख-प्यास की सर पर उठाए यह सूखी लकड़ियों का गट्ठर कहाँ लेकर जा रही हो इसे? तुम्हें नहीं पता है कि लकड़ी जलाना, धुआँ फैलाना, वायु को दूषित करना अपराध है अपराध! गैस है, तेल है ,क्यों नहीं करतीं इस्तेमाल उसे त…
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हार | प्रभात जब-जब भी मैं हारता हूँ मुझे स्त्रियों की याद आती है और ताक़त मिलती है वे सदा हारी हुई परिस्थिति में ही काम करती हैं उनमें एक धुन एक लय एक मुक्ति मुझे नज़र आती है वे काम के बदले नाम से गहराई तक मुक्त दिखलाई पड़ती हैं असल में वे निचुड़ने की हद तक थक जाने के बाद भी इसी कारण से हँस पाती हैं कि वे हारी हुई हैं विजय सरीखी तुच्छ लालसाओं पर उन्हें…
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ग़ुस्सा | गुलज़ार बूँद बराबर बौना-सा भन्नाकर लपका पैर के अँगूठे से उछला टख़नों से घुटनों पर आया पेट पे कूदा नाक पकड़ कर फन फैला कर सर पे चढ़ गया ग़ुस्सा!Por Nayi Dhara Radio
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मरीज़ का नाम- उस्मान ख़ान चाहता हूँ किसी शाम तुम्हें गले लगाकर ख़ूब रोना लेकिन मेरे सपनों में भी वो दिन नहीं ढलता जिसके आख़री सिरे पर तुमसे गले मिलने की शाम रखी है सुनता हूँ कि एक नए कवि को भी तुमसे इश्क़ है मैं उससे इश्क़ करने लगा हूँ मेरे सारे दुःस्वप्नों के बयान तुम्हारे पास हैं और तुम्हारे सारे आत्मालाप मैंने टेप किए हैं मैं साइक्रेटिस्ट की तरफ़…
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बनाया है मैंने ये घर | रामदरश मिश्र बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला कटा ज़िन्दगी का सफर धीरे-धीरे जहाँ आप पहुँचे छलॉंगें लगा कर वहाँ मैं भी पहुँचा मगर धीरे-धीरे पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी उठाता गया यों ही सर धीरे-धीरे गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे न हँस…
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अपने आप से | ज़ाहिद डार मैं ने लोगों से भला क्या सीखा यही अल्फ़ाज़ में झूटी सच्ची बात से बात मिलाना दिल की बे-यक़ीनी को छुपाना सर को हर ग़बी कुंद-ज़ेहन शख़्स की ख़िदमत में झुकाना हँसना मुस्कुराते हुए कहना साहब ज़िंदगी करने का फ़न आप से बेहतर तो यहाँ कोई नहीं जानता है गुफ़्तुगू कितनी भी मजहूल हो माथा हमवार कान बेदार रहें आँखें निहायत गहरी सोच में डू…
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मेरा घर, उसका घर / आग्नेय एक चिड़िया प्रतिदिन मेरे घर आती है जानता नहीं हूँ उसका नाम सिर्फ़ पहचानता हूँ उसको वह चहचहाती है देर तक ढूँढती है दाने : और फिर उड़ जाती है अपने घर की ओर पर उसका घर कहाँ है? घर है भी उसका या नहीं है उसका घर? यदि उसका घर है तब भी उसका घर मेरे घर जैसा नहीं होगा लहूलुहान और हाहाकार से भरा फिर क्यों आती है वह मेरे घर प्रतिदिन …
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रचना की आधी रात | केदारनाथ सिंह अन्धकार! अन्धकार! अन्धकार आती है कानों में फिर भी कुछ आवाज़ें दूर बहुत दूर कहीं आहत सन्नाटे में रह- रहकर ईटों पर ईटों के रखने की फलों के पकने की ख़बरों के छपने की सोए शहतूतों पर रेशम के कीड़ों के जगने की बुनने की. और मुझे लगता है जुड़ा हुआ इन सारी नींदहीन ध्वनियों से खोए इतिहासों के अनगिनत ध्रुवांतों पर मैं भी रचना- …
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धनुष तोड़ श्रीराम ने किया सीता का वरण | बालकाण्ड | राधेश्याम रामायण | Narrated by Kavita Singh | Bharatvani KavitaSingsIndia
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धनुष तोड़ श्रीराम ने किया सीता का वरण | बालकाण्ड | राधेश्याम रामायण | Narrated by Kavita Singh | Bharatvani KavitaSingsIndia
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धरती की बहनें | अनुपम सिंह मैं बालों में फूल खोंस धरती की बहन बनी फिरती हूँ मैंने एक गेंद अपने छोटे भाई आसमान की तरफ़ उछाल दी है। हम तीनों की माँ नदी है बाप का पता नहीं मेरा पड़ोसी ग्रह बदल गया है। कोई और आया है किरायेदार बनकर अब से मेरी सारी डाक उसी के पते पर आएगी मैंने स्वर्ग से बुला लिया है अप्सराओं को वे इन्द्र से छुटकारा पा ख़ुश हैं। आज रात हम …
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पहली पेंशन /अनामिका श्रीमती कार्लेकर अपनी पहली पेंशन लेकर जब घर लौटीं– सारी निलम्बित इच्छाएँ अपना दावा पेश करने लगीं। जहाँ जो भी टोकरी उठाई उसके नीचे छोटी चुहियों-सी दबी-पड़ी दीख गई कितनी इच्छाएँ! श्रीमती कार्लेकर उलझन में पड़ीं क्या-क्या ख़रीदें, किससे कैसे निपटें ! सूझा नहीं कुछ तो झाड़न उठाईं झाड़ आईं सब टोकरियाँ बाहर चूहेदानी में इच्छाएँ फँसाईं…
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इस तरह रहना चाहूँगा | शहंशाह आलम इस तरह रहना चाहूँगा भाषा में जिस तरह शहद मुँह में रहता है रहूँगा किताब में मोरपंख की तरह रहूँगा पेड़ में पानी में धूप में धान में हालत ख़राब है जिस आदमी की बेहद उसी के घर रहूँगा उसके चूल्हे को सुलगाता जिस तरह रहता हूँ डगमग चल रही बच्ची के नज़दीक हमेशा उसको सँभालता इस तरह रहूँगा तुम्हारे निकट जिस तरह पिता रहते आए हैं…
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ये लोग | नरेश सक्सेना तूफान आया था कुछ पेड़ों के पत्ते टूट गए हैं कुछ की डालें और कुछ तो जड़ से ही उखड़ गए हैं इनमें से सिर्फ़ कुछ ही भाग्यशाली ऐसे बचे जिनका यह तूफान कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया ये लोग ठूँठ थे।Por Nayi Dhara Radio
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सीता स्वयंवर Sita Swayamvar | बालकाण्ड राधेश्याम रामायण Baalkand Radheshyam Ramayan | Bharatvani KavitaSingsIndia
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सीता स्वयंवर Sita Swayamvar | बालकाण्ड राधेश्याम रामायण Baalkand Radheshyam Ramayan | Bharatvani KavitaSingsIndia
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क्या भूलूं क्या याद करूं मैं | हरिवंश राय बच्चन अगणित उन्मादों के क्षण हैं, अगणित अवसादों के क्षण हैं, रजनी की सूनी की घड़ियों को किन-किन से आबाद करूं मैं! क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं! याद सुखों की आसूं लाती, दुख की, दिल भारी कर जाती, दोष किसे दूं जब अपने से, अपने दिन बर्बाद करूं मैं! क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं! दोनों करके पछताता हूं, सोच नहीं…
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मंच से | वैभव शर्मा मंच के एक कोने से शोर उठता है और रोशनी भी सामने बैठी जनता डर से भर जाती है। मंच से बताया जाता है शांती के पहले जरूरी है क्रांति तो सामने बैठी जनता जोश से भर जाती है। शोर और रोशनी की ओर बढ़ती है। डरी हुई जनता खड़े होते हैं हाथ और लाठियां खड़ी होती है डरी हुई भयावह जनता डरी हुई भीड़ बड़ी भयानक होती है। डरे हुए लोग अपना डर मिटाने ह…
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बच्चू बाबू | कैलाश गौतम बच्चू बाबू एम.ए. करके सात साल झख मारे खेत बेंचकर पढ़े पढ़ाई, उल्लू बने बिचारे कितनी अर्ज़ी दिए न जाने, कितना फूँके तापे कितनी धूल न जाने फाँके, कितना रस्ता नापे लाई चना कहीं खा लेते, कहीं बेंच पर सोते बच्चू बाबू हूए छुहारा, झोला ढोते-ढोते उमर अधिक हो गई, नौकरी कहीं नहीं मिल पाई चौपट हुई गिरस्ती, बीबी देने लगी दुहाई बाप कहे आ…
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मौत के फ़रिश्ते | अब्दुल बिस्मिल्लाह अपने एक हाथ में अंगारा और दूसरे हाथ में ज़हर का गिलास लेकर जिस रोज़ मैंने अपनी ज़िंदगी के साथ पहली बार मज़ाक़ किया था उस रोज़ मैं दुनिया का सबसे छोटा बच्चा था जिसे न दोज़ख़ का पता होता न ख़ुदकुशी का और भविष्य जिसके लिए माँ के दूध से अधिक नहीं होता उसी बच्चे ने मुझे छला और मज़ाक़ के बदले में ज़िंदगी ने ऐसा तमाचा …
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टॉर्च | मंगलेश डबराल मेरे बचपन के दिनों में एक बार मेरे पिता एक सुन्दर-सी टॉर्च लाए जिसके शीशे में खाँचे बने हुए थे जैसे आजकल कारों की हेडलाइट में होते हैं। हमारे इलाके में रोशनी की वह पहली मशीन थी जिसकी शहतीर एक चमत्कार की तरह रात को दो हिस्सों में बाँट देती थी एक सुबह मेरे पड़ोस की एक दादी ने पिता से कहा बेटा, इस मशीन से चूल्हा जलाने के लिए थोड़ी स…
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सूटकेस : न्यूयर्क से घर तक | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी "इस अनजान देश में अकेले छोड़ रहे मुझे" मेरे सूटकेस ने बेबस निगाहों से देखा जैसे परकटा पक्षी देखता हो गरुड़ को उसकी भरी आँखों में क्या था एक अपाहिज परिजन की कराह या किसी डुबते दोस्त की पुकार कि उठा लिया उसे जिसकी मुलायम पसलियां टूट गई थीं हवाई यात्रा के मालामाल बक्सों बीच कमरे से नीचे लाया जमा कर द…
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आँगन गायब हो गया | कैलाश गौतम घर फूटे गलियारे निकले आँगन गायब हो गया शासन और प्रशासन में अनुशासन ग़ायब हो गया । त्यौहारों का गला दबाया बदसूरत महँगाई ने आँख मिचोली हँसी ठिठोली छीना है तन्हाई ने फागुन गायब हुआ हमारा सावन गायब हो गया । शहरों ने कुछ टुकड़े फेंके गाँव अभागे दौड़ पड़े रंगों की परिभाषा पढ़ने कच्चे धागे दौड़ पड़े चूसा ख़ून मशीनों ने अपनापन…
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नहीं निगाह में | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही न तन में ख़ून फ़राहम न अश्क आँखों में नमाज़-ए-शौक़ तो वाजिब है बे-वुज़ू ही सही किसी तरह तो जमे बज़्म मय-कदे वालो नहीं जो बादा-ओ-साग़र तो हाव-हू ही सही गर इंतिज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिल किसी के वादा-ए-फ़र्दा की गुफ़्तुगू ही सही दयार-ए-ग़ैर …
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तलाश में वहाँ | नंदकिशोर आचार्य जाते हैं तलाश में वहाँ जड़ों की जो अक्सर खुद जड़ हो जाते हैं इतिहास मक़बरा है पूजा जा सकता है जिसको जिसमें पर जिया नहीं जाता जीवन इतिहास बनाता हो -चाहे जितना- साँसें भविष्य की ही लेता है वह रचना भविष्य का ही इतिहास बनाना है।Por Nayi Dhara Radio
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गमन | आग्नेय फूल के बोझ से टूटती नहीं है टहनी फूल ही अलग कर दिया जाता है टहनी से उसी तरह टूटता है संसार टूटता जाता है संसार-- मेरा और तुम्हारा चमत्कार है या अत्याचार है इस टूटते जाने में सिर्फ़ जानता है टहनी से अलग कर दिया गया फूलPor Nayi Dhara Radio
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पुष्प वाटिका में राम सीता साक्षात्कार | बालकाण्ड | Radheshyam Ramayan narrated by Kavita Singh | Bharatvani KavitaSingsIndia
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पुष्प वाटिका में राम सीता साक्षात्कार | बालकाण्ड | Radheshyam Ramayan narrated by Kavita Singh | Bharatvani KavitaSingsIndia
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हत्यारे कुछ नहीं बिगाड़ सकते/ चंद्रकांत देवताले नाम मेरे लिए पेड़ से एक टूटा पत्ता हवा उसकी परवाह करे मेरे भीतर गड़ी दूसरी ही चीज़ें पृथ्वी की गंध और पुरखों की अस्थियाँ उनकी आँखों समेत मेरे मस्तिष्क में तैनात संकेत नक्षत्रों के बताते जो नहीं की जा सकती सपनों की हत्या मैं नहीं ज़िंदा तोड़ने कुर्सियाँ जोड़ने हिसाब ईज़ाद करने करिश्मे शैतानों के मैं हूँ…
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लेबर चौक | शिवम चौबे कठरे में सूरज ढोकर लाते हुए गमछे में कन्नी, खुरपी, छेनी, हथौड़ी बाँधे हुए रूखे-कटे हाथों से समय को धरकेलते हुए पुलिस चौकी और लाल चौक के ठीक बीच जहाँ रोज़ी के चार रास्ते खुलते है और कई बंद होते हैं जहाँ छतनाग से, अंदावा से, रामनाथपुर से जहाँ मुस्तरी या कुजाम से मुंगेर या आसाम से पूंजीवाद की आंत में अपनी ज़मीनों को पचता देख अगली …
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कथरियाँ | एकता वर्मा कथरियाँ गृहस्थियों के उत्सव-गीत होती हैं। जेठ-वैसाख के सूखे हल्के दिनों में सालों से संजोये गए चीथड़ों को क़रीने से सजाकर औरतें बुनती हैं उनकी रंग-बिरंगी धुन। वे धूप की कतरनों पर फैलती हैं तो उठती है, हल्दी और सरसों के तेल की पुरानी सी गंध। गौने में आयी उचटे रंग की साड़ियाँ बिछ जाती हैं महुए की ललायी कोपलों की तरह जड़ों की स्मृ…
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रिश्ता | अनामिका वह बिल्कुल अनजान थी! मेरा उससे रिश्ता बस इतना था कि हम एक पंसारी के गाहक थे नए मुहल्ले में! वह मेरे पहले से बैठी थी- टॉफी के मर्तबान से टिककर स्टूल के राजसिंहासन पर! मुझसे भी ज़्यादा थकी दिखती थी वह फिर भी वह हँसी! उस हँसी का न तर्क था, न व्याकरण, न सूत्र, न अभिप्राय! वह ब्रह्म की हँसी थी। उसने फिर हाथ भी बढ़ाया, और मेरी शॉल का सिर…
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कैसे बचाऊँगा अपना प्रेम | आलोक आज़ाद स्टील का दरवाजा गोलियों से छलनी हआ कराहता है और ठीक सामने, तुम चांदनी में नहाए, आँखों में आंसू लिए देखती हो हर रात एक अलविदा कहती है। हर दिन एक निरंतर परहेज में तब्दील हुआ जाता है क्या यह आखिरी बार होगा जब मैं तुम्हारे देह में लिपर्टी स्जिग्धता को महसूस कर रहा हूं और तुम्हारे स्पर्श की कस्तूरी में डूब रहा हूं देख…
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