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दा निज़ामुद्दीन एक्सप्रेस | स्टोरीबॉक्स विद जमशेद
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निज़ामुद्दीन एक्सप्रेस में मिले दो अजनबी खेलते हैं ट्रेन में कौन सा ख़तरनाक खेल? सुनिए जमशेद क़मर सिद्दीक़ी की नई थ्रिलर कहानी - दा निज़ामुद्दीन एक्सप्रेस
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निज़ामुद्दीन एक्सप्रेस में मिले दो अजनबी खेलते हैं ट्रेन में कौन सा ख़तरनाक खेल? सुनिए जमशेद क़मर सिद्दीक़ी की नई थ्रिलर कहानी - दा निज़ामुद्दीन एक्सप्रेस
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×नब्बे के दशक की एक उदास प्रेम कहानी जिसमें तृष्णा और केशव ने प्रेम की एक नई परिभाषा गढ़ी जो सदियों तक याद की जाएगी. सुनिए रश्मि कुलश्रेष्ठ की लिखी कहानी 'शेष रहेगा प्रेम' का एक हिस्सा स्टोरीबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से.
एक ज़मीन जो अपनों का खून मांगती थी और उसके बदले में देती थी लहलहाती फसल. ज़मीन से पैदावार निकालने के इस लालच भरे खेल में बहा बेइंतिहा खून और काट कर डाल दी गयी अपनों की लाशें - सुनिए पूरी कहानी जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से. साउंड मिक्सिंग: रोहन भारती
नफ़रत की आग में पूरा शहर जल रहा था. हर तरफ लाशों के ढेर लगे थे. कहीं से हर हर महादेव के नारे की आवाज़ आती थी कहीं से अल्लाह हुअकबर की. यूनुस खान नाम का बलोच अपने ट्रक से गुज़र रहा था कि उसे सड़क किनारे एक छोटी बच्ची खून से लथपथ दिखाई दी - सुनिए कृष्णा सोबती की लिखी कहानी 'मां कहां है' साउंड मिक्सिंग: रोहन भारती…
उस दोपहर घर के कबाड़ वाले कमरे में कुछ ढूंढते हुए मेरी नज़र एक पुरानी किताब पर पड़ी. धूल से पटी वो किताब कोई नॉवेल थी. मैंने उसे खोला तो अंदर से एक कागज़ सरक कर नीचे गिरा. मैंने पढ़ा तो वो ख़त उनके प्रेमी का था. सुनिए पूरी कहानी स्टोरीबॉक्स में. साउंड मिक्सिंग: सूरज सिंह
बहुत पुराने वक्त की बात है. एक शहर था जहां सब कुछ ठीक था. ठीक इसलिए था क्योंकि उस शहर में कोई किसी से शिकायत नहीं करता था. लोगों में ज़ब्त का बड़ा माददा था. उदास चेहरे , भूख और बेकारी तो थी लेकिन फिर भी सब कुछ ठीक था. लोग अपने शहर के हुक्मरान से प्यार करते थे. क्रांति स्थगित थीं क्योंकि क्रांतिकारियों को दफ़्तर से छुट्टी नहीं मिलती थी लेकिन हां कुछ क्रांतिकारी वक्त निकालकर वीकेंड-वीकेंड पर क्रांति करते थे. सुनिए कहानी 'वीकेंड के क्रांतिकारी' जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से. साउंड मिक्सिंग: सूरज सिंह…
हम उस जेनरेशन से आते हैं जो इश्क़ करना फिल्मों से सीखती है जहां हर पल कुछ हो रहा होता है. कोई शरारत, कोई बात, कोई बातचीत. हम समझते हैं कि इश्क़ में ऐसा ही होता है और अगर ये नहीं है तो इश्क़ बोरिंग है लेकिन हकीकत ये है कि इश्क़ उन शादीशुदा पुराने लोगों के बीच भी होता है जो एक कमरे में बैठे बिना बात किये खामोशी से अपना अपना काम करते रहते हैं. उनका इश्क़ वक्त के साथ मैच्योर हो जाता है - सुनिये कहानी 'पहली सी मुहब्बत' स्टोरीबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से. साउंड मिक्सिंग: रोहन भारती…
हमारे मुहल्ले में एक साहब रहते हैं जिनके 6 बच्चे हैं और सारे के सारे बच्चे इतने शैतान कि जिस तरफ जाते हैं लगता है टिड्डी किसी खेत पर हमला करने जा रहे हैं. एक रोज़ वो साहब अपने सारे बच्चों और बीवी के साथ हमाए घर मोहल्लेदारी करने आ गए. बच्चों ने पूरे घर का जायज़ा इस तरह लेना शुरु कर दिया जैसे वो किसी कमरे में नहीं, किसी जंगल में आए हों. उसके बाद दो बच्चों ने टार्ज़न की तरह खौफनाक चीख अपने हलक से निकाली और रेडियो की तरफ लपके - सुनिये कृष्ण चंदर की कहानी का एक हिस्सा 'मुझे बच्चों से बचाओ' स्टोरीबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से…
"दुनिया में औलाद और मां-बाप की ये कहानी हज़ारों बार दोहराई जा चुकी है पर ये कहानी है कि कभी पुरानी नहीं होती. ये कहानी तब तक दोहराई जाएगी जब तक औलादें उतनी मुहब्बत अपने मां-बाप से करना नहीं सीखेंगी. फिक्र मत करो, घर तुम्हारे नाम कर दिया है बेटा" - सुनिये उम्र के आखिरी मोड़ पर खड़े एक शख्स की आखिरी मुहब्बत और उसके बेटे की नाराज़गी की कहानी - चलो एक बार फिर से - स्टोरीबॉक्स में जमशेद कमर सिद्दीक़ी से…
उनकी हर बात 'नहीं' से शुरु होती थी. मान लीजिए आप उनसे कहें कि आज बड़ी सर्दी है, वो कहेंगे "नहीं, कल ज़्यादा पड़ेगी" आप कहिए, "मैं कल सड़क पर फिसल कर गिर गया" वो फौरन कहेंगे, "नहीं, ये तो कुछ भी नहीं, मैं तो एक दफ़ा ऐसा फिसला था कि क्या बताऊं, हुआ यूं कि..." और फिर किस्सा शुरु कर देंगे. हमेशा चूड़ीदार पैजामा पहनते थे औक मूंछों पर ताव देते थे. पैजामा के इज़ारबंद में चाबियों का गुच्छा बंधा रहता था. उस गुच्छे में पुराने-पुराने ताले की चाबियां थी जिनके ताले खो चुके थे - वो कोई और नहीं बशारत अली ख़ान यानि मेरे ससुर साहब थे. सुनिए पूरा किस्सा स्टोरीबॉक्स में…
निज़ामुद्दीन एक्सप्रेस में मिले दो अजनबी खेलते हैं ट्रेन में कौन सा ख़तरनाक खेल? सुनिए जमशेद क़मर सिद्दीक़ी की नई थ्रिलर कहानी - दा निज़ामुद्दीन एक्सप्रेस
वो नए साल की रात थी... चैपल स्ट्रीट से घर लौटते एक शख्स को एक औरत की लाश पड़ी मिली... लाश का सर धड़ से अलग था. और उसे बेरहमी से मारा गया था. जिस्म के सारे नाखून खींच लिये गए थे और सर से सारे बाल नोच लिये गये थे. पुलिस को ख़बर की गयी लेकिन जबतक पुलिस पहुंची तब तक इलाके में एक और कत्ल हो गया. दो रोज़ के बाद पुलिस को एक खत मिला जिसमें कातिल ने कहा था कि कत्ल का ये सिलसिला अब तब ही रुकेगा जब इस दुनिया से आखिरी बेवफ़ा औरत भी खत्म हो जाएगी - सुनिए इतिहास के सबसे खूंखार सीरियल किलर की सच्ची घटना स्टोरीबॉक्स में, जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से…
"तुम कहना क्या चाहती हो, क्या ये कह रही हो कि मैं नहाता नहीं हूं, मैं तो रोज़ नहाता हूं बल्कि दिन में दो बार नहाता हूं" - "देखिए, दो डोंगा पानी डाल कर पोछ लेने को नहाना नहीं कहते, कभी बाथरूम में रखी वो लाल रंग की टिकिया देखी है उसे साबुन कहते हैं, कभी इस्तेमाल की है वो" - "नहीं, मैं साबुन नहीं लगाता क्योंकि साबुन में तेज़ाबी चीज़ें होती हैं और उससे स्किन ख़राब हो जाती है" - सुनिए मंटो के लिखी एक कहानी का हिस्सा 'मेरे पति की पतलून' स्टोरीबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से…
सर्द रात में उसकी बेटी बुखार से बुरी तरह से तप रही थी लेकिन उसकी जेब में इतना पैसा भी नहीं था कि एक चादर ख़रीद सकता. बेटी अपनी कंपकपी छुपा रही थी ताकि बूढ़ा बाप अपनी बेबसी पर कम शर्मिंदा हो लेकिन उसके कांपते हुए होंठ उसका साथ नहीं दे रहे थे. बाप उठा और कब्रिस्तान की तरफ चल दिया - सुनिए कहानी जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से…
चुगलखोर चाचा जब मर कर दूसरी दुनिया में पहुंचे तो उन्हें पता चला कि वो तो दोज़ख में भेज दिये गए हैं। वहां उन्होंने क्या किया कि उन्हें वापस जन्नत भेजा गया और आखिर क्यों उन्हें जन्नत रास नहीं आई - सुनिए पूरी कहानी स्टोरबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से
बात सिर्फ एक ग्लास पानी की थी लेकिन घर में रखा पानी बदबूदार था. उसका गला इस क़दर सूख गया था कि बस मरने ही वाला था और पूरे गांव में सिर्फ एक कुआं था जहां पानी मिल सकता था और वो था ठाकुर साहब का कुआं. उस कुएं से पानी पीना उसके लिए मना था लेकिन उसकी पत्नी ने फैसला किया कि वो आधी रात को जाएगी पानी लेने के लिए - सुनिए कहानियों के बादशाह मुंशी प्रेमचंद की लिखी कहानी 'ठाकुर का कुआं' स्टोरीबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीकी से…
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