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कैसा था प्रेमचंद का बचपन? | क़लम का सिपाही (अंश) | अमृत राय | Qalam Ka Sipahi (Excerpt)| Hindi Urdu Audio Stories
Manage episode 440915964 series 3247237
If Premchand was looking down from the heavens above at school kids across Hindi speaking India, reading the same two or three stories of his, with the teacher blaring ‘morals’ at the end of class, he would be appalled. In popular imagination over the last seventy five years, Premchand’s writing has come to mean stories set against a depressing poverty stricken rural backdrop, melodramatic stories with intense emotions …and nothing could be farther from the truth. We have done a huge disservice to Premchand and to literature in general by relegating him to textbooks and impassive classroom lectures.
In the brilliantly written biography of his father Amrit Rai talks not only about Premchand’s works but places him in the socio-cultural context of his time, drawing from a variety of sources. In doing so we see a 360 degree Premchand- writer, activist, progressive, satirist, husband and father.
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स्वर्गवासी प्रेमचंद अगर ऊपर आसमान से हिंदी भाषी भारत भर के स्कूली बच्चों को उनकी वही दो या तीन कहानियाँ पढ़ते देख रहे होते, और देखते की कैसे शिक्षक कक्षा के अंत में कैसे 'नैतिकता' का ढिंढोरा पीट रहे हैं, तो वे चकित रह जाते। पिछले पचहत्तर वर्षों में लोकप्रिय कल्पना में, प्रेमचंद के लेखन का अर्थ निराशाजनक, गरीबी से त्रस्त ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित कहानियाँ हैं ... लेकिन ये बात सच्चाई से बहुत दूर है हमने प्रेमचंद को पाठ्य पुस्तकों और भावहीन कक्षा व्याख्यानों तक सीमित करके आम तौर पर प्रेमचंद और साहित्य के प्रति बहुत बड़ा अहित किया है।
अपने पिता की शानदार ढंग से लिखी गई जीवनी में अमृत राय न केवल प्रेमचंद के रचनाशिल्प के बारे में बात करते हैं, बल्कि विभिन्न स्रोतों से उन्हें अपने समय के सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में रखते हैं। ऐसा करते हुए हमें प्रेमचंद की एक संपूर्ण तस्वीर देखने को मिलती है- प्रेमचंद लेखक, कार्यकर्ता, प्रगतिशील, व्यंग्यकार, पति और पिता के रूप में।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय : धनपत राय श्रीवास्तव जिन्हे साहित्य प्रेमी प्रेमचंद के नाम से जाने जाते हैं, हिन्दी और उर्दू के शायद सबसे अधिक लोकप्रिय रचनाकार हैं । उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनके उपन्यास सुर कथाएं हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में भी उन्होंने लिखा।वे हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस के संपादक और प्रकाशक भी रहे। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई भी गए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। वे जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे।
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If Premchand was looking down from the heavens above at school kids across Hindi speaking India, reading the same two or three stories of his, with the teacher blaring ‘morals’ at the end of class, he would be appalled. In popular imagination over the last seventy five years, Premchand’s writing has come to mean stories set against a depressing poverty stricken rural backdrop, melodramatic stories with intense emotions …and nothing could be farther from the truth. We have done a huge disservice to Premchand and to literature in general by relegating him to textbooks and impassive classroom lectures.
In the brilliantly written biography of his father Amrit Rai talks not only about Premchand’s works but places him in the socio-cultural context of his time, drawing from a variety of sources. In doing so we see a 360 degree Premchand- writer, activist, progressive, satirist, husband and father.
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स्वर्गवासी प्रेमचंद अगर ऊपर आसमान से हिंदी भाषी भारत भर के स्कूली बच्चों को उनकी वही दो या तीन कहानियाँ पढ़ते देख रहे होते, और देखते की कैसे शिक्षक कक्षा के अंत में कैसे 'नैतिकता' का ढिंढोरा पीट रहे हैं, तो वे चकित रह जाते। पिछले पचहत्तर वर्षों में लोकप्रिय कल्पना में, प्रेमचंद के लेखन का अर्थ निराशाजनक, गरीबी से त्रस्त ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित कहानियाँ हैं ... लेकिन ये बात सच्चाई से बहुत दूर है हमने प्रेमचंद को पाठ्य पुस्तकों और भावहीन कक्षा व्याख्यानों तक सीमित करके आम तौर पर प्रेमचंद और साहित्य के प्रति बहुत बड़ा अहित किया है।
अपने पिता की शानदार ढंग से लिखी गई जीवनी में अमृत राय न केवल प्रेमचंद के रचनाशिल्प के बारे में बात करते हैं, बल्कि विभिन्न स्रोतों से उन्हें अपने समय के सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में रखते हैं। ऐसा करते हुए हमें प्रेमचंद की एक संपूर्ण तस्वीर देखने को मिलती है- प्रेमचंद लेखक, कार्यकर्ता, प्रगतिशील, व्यंग्यकार, पति और पिता के रूप में।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय : धनपत राय श्रीवास्तव जिन्हे साहित्य प्रेमी प्रेमचंद के नाम से जाने जाते हैं, हिन्दी और उर्दू के शायद सबसे अधिक लोकप्रिय रचनाकार हैं । उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनके उपन्यास सुर कथाएं हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में भी उन्होंने लिखा।वे हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस के संपादक और प्रकाशक भी रहे। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई भी गए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। वे जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे।
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